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आराधना

राधना, प्रार्थना तथा स्तुति से भिन्न है, “प्रभु मुझ पर दया कर”, प्रार्थना है; “प्रभु मुझपर दया करने के लिए मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ”, यह स्तुति है; और “प्रभु तू जो कुछ है उसके लिए मैं तेरे सामने दण्डवत् करता हूं”, यह आराधना है।

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आराधना का अर्थ है एक श्रेष्ठ हस्ती को श्रद्धा या आदर अर्पित करना। यह प्रभु के साथ लागू होता है इसलिए, तू प्रभु अपने परमेश्वर को दण्डवत् कर। मनुष्य को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए। आराधना उस हृदय का उमड़ पड़ना है, जिसने पिता को एक दाता के रूप में, पुत्र को मुक्तिदाता के रूप में, और पवित्र आत्मा को अन्तर में वास करनेवाले के रूप में जान लिया है।

आराधना हृदय, मन, और शरीर का कार्य है। लैव्यव्यवस्था की पुस्तक में सच्चे परमेश्वर की आराधना के लिए बहुत अधिक निर्देश दिए गए हैं। आराधना अनन्तकाल तक हमारा कार्य रहेगा।

पवित्र शास्त्र इस विषय पर बहुत अधिक सुस्पष्ट है – परमेश्वर के नबियों ने हमारे सामने जो रखे हैं, उसे सुनें। तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर, क्योंकि वह तो तेरा प्रभु है। हमें मूरतों का प्रणाम नहीं करना है। संसार में बहुत बड़ी संख्या में लोग लकड़ी और पत्थर की बनी मृत मूरतों का प्रणाम करते हैं। बहुत से लोग अहम्, धन, व्यापार, आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, परिवार, सम्पत्ति तथा विज्ञान की मूरतों की आराधना करते हैं। हमें मनुष्य की भी आराधना नहीं करनी है। हमें स्वर्गदूतों के सामने सिर नहीं झुकनी है। हमें प्रकृति (सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रों, वृक्षों आदि) की आराधना नहीं करनी है। आराधना सम्बन्धि चोर – शैतान है। वह आपकी पूजा के लिए उत्सुक है और निर्लज्जता से आपको ऐसा करने के लिए लुभाएगा।

हमें येशु के द्वारा पवित्र आत्मा में परमेश्वर पिता की आराधना करनी चाहिए, क्योंकि उनके बिना कोई पिता के पास सीधा नहीं जा सकता है। आराधना आत्मिक होनी चाहिए अर्थात् आत्मा में की जानी चाहिए। आराधना निष्कपट होनी चाहिए, अर्थात् सच्चाइ से होनी चाहिए, क्योंकि परमेस्वर हृदय को देखता है, वह यह देखता है कि हमारे होठों से कहे गए शब्द सच हैं या नहीं। आराधना बुद्धिमत्ता के साथ होनी चाहिएय़ परमेश्वर अज्ञानता पर पुरस्कार नहीं देता। सच्ची आराधना का एक परिणाम निकलता है – परमेश्वर आराधक के हृदय को आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण कर देता है।

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